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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 11

प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की विधियाँ

(Techniques of Manufacture of
Coins in Ancient India)

प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।

अथवा
प्राचीन भारत में सिक्के बनाने की क्या विधियाँ थीं?
अथवा
प्राचीन भारत में सिक्के बनाने की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए?

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. प्राचीन समय की सिक्का निर्माण कला का वर्णन कीजिए।
2. प्राचीन समय में सिक्के के साँचे तथा ढालने के तरीके का वर्णन कीजिए।
3. प्राचीन समय में मुद्रा निर्माण के केन्द्र क्या थे?
4. प्राचीन समय में सिक्के के लेख बताइये।

उत्तर-

विभिन्न रीतियाँ - प्राचीन भारतीय सिक्कों के सम्बन्ध में अनेक बातें जानने के पश्चात् यह जानना आवश्यक है कि उनके बनाने की रीति पर विचार किया जाए। अभी तक जो कुछ भी अनुसंन्धान हो पाया है। उसी के आधार पर ज्ञातव्य बातों का विवेचन किया जायेगा। भारत में जितने प्रकार की मुद्रायें मिली हैं उनमें कार्षापण ही प्राचीनतम हैं, ज्यों-ज्यों कला में वृद्धि होती गयी, सिक्का बनाने की रीति में उन्नति होती गयी। शासक के हाथों में इस कार्य के आने पर अधिकारी नियुक्त किये गये। उन्होंने सिक्का तैयार करने के लिए रीति का समावेश किया। इस वर्तमान समय तक तीन प्रकार से तैयार करने की रीति ज्ञात हो चुकी है। प्रथम तरीका कर्षापण बनाने का था।

सिक्का बनाने की कला - इसमें ताम्बे या चाँदी की पतली चादर (पतर) तैयार की जाती थी और चौकोर टुकड़ा काट लिया जाता था ताकि वह तौलने पर नियन्त्रित वजन (Standard weight) के बराबर हो जाए। तौल को ठीक करने के लिए उस टुकड़े के किसी भाग को काट लिया जाता था। इस ढंग से सिक्का उचित तौल का बन जाता था। चौकोर टुकड़े से कुछ काटने के कारण आकार में विभिन्नता आ जाती थी। इस तरह सिक्के में कई कोण हो जाते थे। यही कारण है कि प्राचीन कार्षापण कई आकार के मिलते हैं। इसके पश्चात् चिन्ह ( Symbol) अंकित करने का कार्य सबसे प्रधान था। कुछ विद्वानों का मत है कि ये चिन्ह विभिन्न संस्थाओं द्वारा अंकित किये जाते थे। जब कार्षापण या पुराण की शुद्ध धातु की परीक्षा की जाती थी, उस समय एक चिन्ह लगा दिया जाता था।

सांचे में ढालना - ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी से नयी रीति (सांचे में ढालना) से सिक्के बनाने का प्रचलन हुआ। यह निश्चित है कि सांचे में ढालने का तरीका भारत में बहुत पहले ज्ञात था। डॉ. बीरबल साहनी में बड़े परिश्रम के साथ सुन्दर शब्दों में सिक्के ढालने की रीति का वर्णन किया है। जितने साँचे अभी तक मिले हैं, उनमें सबसे पुराना रोहतक (पंजाब) वाला साँचा ईसा पूर्व पहली सदी का है।

सांचे की बनावट - आज तक जितने सांचे मिले हैं वे सब मिट्टी को पकाकर तैयार किये गये थे। साँचे को तैयार करके भट्टी में रख दिये जाते थे। जब वह आग में पंका कर लाल हो जाता तो मध्य छिद्र से धातु को उनमें ढाला जाता था। धातु गलाकर नलियों द्वारा असली स्थान पर पहुँच जाती और विशिष्ट आकार में फैल जाती। भट्टी के ठण्डे होने पर साँचे को तोड़ दिया जाता था, और सिक्का उस स्थान से हटा लिया जाता। उसी छोटे स्थान में चिन्ह तथा लेख साँचे से धातु पर अंकित हो जाते थे।

साँचे बनाने से पूर्व मिट्टी में प्रायः धान का छिलका मिलाया जाता था। उसे गोलाकार धातु की चादर पर फैलाया जाता था। चद्दर के बीच में एक कील लगी रहती थी ताकि मिट्टी के फैलने पर भी केन्द्र में छेद बना रहे। उस मिट्टी की तह पर लोहे के नक्षत्र की तरह यंत्र से दबाव दिया जाता था, जिससे उस गोल मिट्टी की तह पर कई पतली नालियाँ बन जाती थी। प्रत्येक नाली के अन्त में गोल सिक्के के चिन्ह तथा लेख सहित सांचा बना रहता था, इस गोल सतह को मण्डल कहते थे।

निचले मण्डल पर जो कुछ अंकित होता था अग्रभाग (Obverse ) या पृष्ठ भाग का (Reverseside ) का चित्र होता था। दूसरा मण्डल भी मिट्टी का तैयार किया जाता था, जिससे दोनों तरफ एक सी बनावट रहती थी। एक मण्डल के ऊपर दूसरा मण्डल इस प्रकार रखा जाता था कि केन्द्र से केन्द्र, नलियों से नलियों तथा सिक्के के स्थान से सिक्का का स्थान ठीक-ठीक बैठ जाए और पूरे साँचे का मुँह में मुँह मिला रहे, इस बनावट से गली धातु के बाहर निकल जाने की सम्भावना नहीं रहती थी।

ढालने का तरीका - उसका ठीक उलटा सिक्कों के सांचे में होता था। मिट्टी का बना सांचा मिट्टी में रखा जाता था। मण्डल के केन्द्र में जो छेद बना रहता उसमें धातु ढाल दी जाती थी। वह गलकर विभिन्न सतह में फैल जाती थी। एक तरह में किरण की तरह जितनी फैली नलियाँ रहती उनसे होकर सिक्के के असली घर (Coin Socket ) में गली धातु पहुँच जाती थी। उस स्थान पर जो नमूना ( चिन्ह या लेख ) मिट्टी की गहराई में खुदा रहता वही उस धातु के टुकड़े पर उतर आता या स्वतः अंकित हो जाता था। ठण्डा होने पर मिट्टी के पूरे आकार को तोड़ दिया जाता था। जो चित्रित गोलाकार धातु पिण्ड निकालता उसे सिक्का कहते थे। इस रीति से एक साथ कई सिक्के बनते थे। वर्तमान काल में कई स्थानों की खुदाई से मिट्टी की मुद्रायें ( Seals) निकली है, जिनकी पूरी परीक्षा कर यह निश्चित किया गया है कि वे एक सिक्का ढालने के यंत्र (सांचा) है, राजघाट (काशी) की खुदाई में ऐसे सांचे का एक टुकड़ा मिला है। उन पर आकृतियाँ तथा लेख मौजूद हैं, जो प्रायः सिक्कों पर पाये जाते हैं। ऐसे दो भाग को मिलाकर धातु पिण्ड पर अग्र तथा पृष्ठ चित्र अंकित किया जाता था, इस ढंग से भी धातु को गलाकर सांचे एवं सिक्के के वास्तविक स्थान (घर) पर पहुँचाया जाता था। सांचे के ठण्डे होने पर बिना तोड़े सिक्का निकाल लिया जाता था। साँची, काशी, कौशाम्बी तथा नालंदा में ऐसे सांचे का प्रयोग होता था।

कुछ लोगों का अनुमान है कि सांचे लोहे, पत्थर या मिट्टी के बनते थे। अभी तक खुदाई में मिट्टी के ही सांचे मिले है। ईसा पूर्व तीसरी सदी में कौशाम्बी, अयोध्या तथा मथुरा में सिक्के, ढाले जाते थे। उनका आकार गोल था, ढालने के समय चौकोर सिक्कों के स्थान पर गोल आकार में सिक्के बनाना सुगम तथा सरल था। इसलिए उनके रूप में सुन्दर परिवर्तन हो गया।

ठप्पा मारने का ढंग - तीसरी सदी ठप्पे से सिक्के तैयार करने की रीति थी जो आज तक काम में लाई जाती है। इस रीति से गरम धातु के टुकड़े पर ठप्पे के दबाव से चिन्ह तथा लेख गहराई में अंकित हो जाते थे। ठप्पे के निशान से सिक्के तैयार करने की प्रथा ढालने के बाद काम में लाई गयी। ईसा पूर्व चार सौ वर्ष पुराने सिक्के मिले हैं, जिन पर एक ओर चिन्ह बना है। बोधिवृक्ष, स्वास्तिक या शेर की आकृति तक्षशिला के सिक्कों पर मिलती है, जो ठप्पे से तैयार किये जाते रहे। ईरानी सिक्कों को देखकर दोनों तरफ ठप्पा मारने का दोहरा तरीका प्रयोग किया गया। पहले नीचे के ठप्पे पर ऊपरी (Obverse) सिक्के की पूरी आकृति खोदी जाती। उसके बाद गरम धातु को रखकर ऊपर से दबाव डाला जाता। इस प्रकार दोहरे ठप्पे में सिक्कों का सुन्दर गोल रूप बन जाता, गान्धार में सबसे पहले दोहरे ठप्पे से सिक्के तैयार होने लगे। इन सिक्कों पर हाथी, शेर नन्दि अथवा अन्य धार्मिक चिन्ह भारतीयता के द्योतक हैं, जिनको यूनानी राजाओं ने अनुकरण किया था। भारतीय गणराज्यों ने इस रीति को अपनाया।

मुद्रा निर्माण के केन्द्र - वर्तमान परिस्थिति ने ठीक तरह से नहीं कहा जा सकता है कि श्रेणी, गण, अथवा शासक किस विशिष्ट स्थान पर सिक्के तैयार करना पसन्द करते थे। आधुनिक खुदाई में कई स्थानों पर साँचें मिले है, जिससे अनुमान किया जाता है कि उस स्थान पर सिक्के, ढलते थे। पंजाब के रोहतक स्थान में डॉ. बीरबल साहनी ने अनेकों सांचों को ढूँढ निकाला है, जिस सांचे में कई सिक्के एक साथ तैयार किये जाते थे। इसी तरह लुधियाना के समीप सुनेत स्थान पर तीसरी चौथी सदी में शासन करने वाले यौधेय लोग सिक्के ढालते रहे। साँची, काशी तथा नालन्दा में भी सिक्के ढालने के सांचे मिले हैं। अनुमान किया जाता है कि साँची में क्षत्रप तथा काशी और नालन्दा में गुप्त राजाओं के सिक्के ढाले जाते होंगे। मथुरा तथा तक्षशिला के सांचे जाली माने जाते है। एरण में प्राप्त सिक्के के आधार पर यह कहा जाता है कि वहाँ दोहरे कांसे के ठप्पे में मुद्रा तैयार की जाती थी। हैदराबाद (दक्षिण) के कोहण्डपुर नामक स्थान में मुद्रा निर्माण का केन्द्र था, जहाँ आहत् क्षत्रप तथा आंध्र (सातवाहन) सिक्के समय-समय पर तैयार होते रहे। सम्भवतः राजधानी में टकसाल घर अवश्य थे। साँची, काशी, कौशम्बी, नालन्दा आदि स्थान व्यापार के मार्ग में प्रधान नगर था। व्यापार तथा सिक्के निर्माण की पारम्परिक उपयोगिता को कोई कम नहीं कर सकता। इस कारण शासकों ने उन स्थानों को मुद्रा तैयार करने का केन्द्र बनाया।

सिक्के पर लेख (भाषा तथा अक्षर ) - भारत में सबसे प्राचीन सिक्के कार्षापण निशान बनाने के कारण ही चिन्हित के नाम से पुकारे गये। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में विदेशियों के अनुकरण पर सिक्कों पर लेख अंकित किया जाने लगे। भारत में यूनानी सिक्कों पर यूनानी के अक्षरों में ही उपाधि सहित राजा का नाम अंकित करने की प्रथा प्रचलित थी। डिमित के भारत आक्रमण करने से स्थानीय जनता से सम्बन्ध बढ़ने लगा। वित्रित प्रदेशों में भारतीय यूनानी राजा सिक्के तैयार करने लगे। अतएव उनके लिए यह आवश्यक हो गया कि वहाँ की भाषा तथा वर्णमाला का प्रयोग सिक्कों पर किया जाए। जनता की भाषा में राजा का नाम सिक्कों पर सीमा पर रहकर प्राकृत भाषा तथा खरोष्ठी (लिपि) में यूनानी नरेशों ने उपाधि सहित नाम लिखना प्रारम्भ कर दिया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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